गोत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख किस वेद में हुआ है?

प्राचीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय वैदिक एवं महाजनपद काल  से पूछा गया प्रश्न गोत्र शब्द का सर्वप्रथम

उल्लेख किस वेद में हुआ है? क्या आप जानते है गोत्र शब्द का उल्लेख सबसे पहले किस वेद में हुआ था अगर आप

जानते है तो आप हमें कंमेंट में उत्तर जरूर बताये । इस प्रश्न को अंग्रेजी में In which Veda is the word gotra

mentioned for the first time? इस प्रकार से पूछा जा सकता है । दोस्तों अगर आप किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की

तैयारी कर रहे है तो आपको इस लेख में प्रचीन इतिहास का महत्वपूर्ण टॉपिक ऋग्वेद से पूछे जाने वाले प्रश्न उत्तर के

बारे में जानगे तथा हमारे द्वारा पूछे गया प्रश्न का उत्तर भी जानगे ।

गोत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख किस वेद में हुआ है?

वैदिक साहित्य

वेद किसे कहते है?

वेद शब्द विद् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है जानना, अर्थात् ज्ञान कहा जाता है कि वेदों का एक पीढ़ी से दूसरी

पीढ़ी तक मौखिक रूप से आदान-प्रदान होता रहा है और इसलिए इन्हें श्रुति (सुनना) अथवा दैवीज्ञान भी कहा जाता है ।

वेद चार प्रकार के होते है ।

ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद , अथर्ववेद

प्रथम तीन वेदों को संयुक्त रूप से त्रयी कहा जाता है । प्रत्येक वेद को संहिताओं में भी विभाजित किया गया है । वेदों

का अच्छी तरह स्मरण किया जाता था और गुरु – शिष्य परम्परा के द्वारा इन्हें जीवित रखा गया । वेदों के

संकलनकर्ता कृष्णद्धैपायन थे ।  इन्हें वेदों के पृथक्करण –व्यास के कारण वेदव्यास भी कहा जाता है ।

ऋग्वेद

ऋग्वेद को विश्व की प्राचीनतम धार्मिक पुस्तक माना जाता है । यह अनेक ऋषियों द्वारा रचित ऋचाओं या सूक्तों

का संकलन है जिनका यज्ञापि एवं अन्य अनुष्ठानों के समय श्रद्धा सहित वाचन किया  जाता है।

ऋग्वेद में 10 मण्डल, 1028 श्लोक (1017 सूक्त तथा 11 वलाखिल्य) तथा लगभग 10600 मन्त्र है । ऋग्वेद में

इन्द्र, अग्नि, वरूण आदि देवता ओ की स्मृति में रची गई प्रार्थनाओं का संकलन है तथा इसका फाट करने वाले

ब्राह्रणों को होतृ या होता कहा गया है । कहा जाता है कि दसवाँ मण्डल इसके बाद में जोड़ा गया क्योंकि इसकी भाषा

प्रारम्भिक नौ मण्डलों में  से भिन्न है  दसवें मण्डल में प्रसिद्द पुरुष सुक्त है , जिसमें ब्रह्रा के मुख, भुजाओं जंघाओं

और पैरों से चार वर्णों अस्त्र शस्त्रों के निर्माण में हुआ परन्तु धीरे-धीरे इसका व्यवहार कृषि एवं अन्य आर्थिक

गतिविधियों में भी होने लगा इन परिवर्तनों का प्रभाव सभ्यता एवं संस्कति पर व्यापक रूप से पड़ा । लोहे को कृष्ण

अयस कहा जाता था ।

लोहे के उपकरणों के प्रयोग से गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र को साफ करना अधिक सुगम हो गया तथा आर्यों का

विस्तार गंगा यमुना दोआब के अन्तर्गत समूचे उत्तर भारत में हो गया । राजा का पद आनुवांशिक बन गया जो

सामान्यतः उसके ज्येष्ठ पुत्र को मिलने लगा । राजा मंन्त्रियों की सहायता से समस्त राज्य का प्रशासन करता था ।

इन मन्त्रियों को उत्तर वैदिक काल में रत्निन कहा जाता था । परिवार पितृ प्रधान एवं संयुक्त परिवार था । समाज में

स्त्रियों की दशा में पत्तन हुआ जाति प्रथा कर्म के आधार पर न होकर जन्म के आधार पर होने लगी और उसमें

कठोरता आ गई । इसी काल में एक गोत्र मे विवाह नहीं करने की प्रथा का प्रचलन हुआ । गोत्र मोटे तौर पर उन लोगों

के समूह को कहते है । जिनका वंश एक मूल पूरुष पूर्वज से अटूट क्रम से जुडा है  गोत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख

ऋग्वेद में हुआ है ।

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सवाल  – गोत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख किस वेद में हुआ है? /गोत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख किस वेद में हुआ है
जवाब  – ऋग्वेद में
गोत्र क्या है ?

मनुस्मृति में विवाह के आठ प्रकारों का उल्लेख किया गया है। जिसमें प्रथम चार विवाह प्रशंसनीय तथा शेष चार

निंदनीय माने जाते है । दैव यज्ञ करने वाले पुरोहित के साथ कन्या का विवाह होता है । आर्ष कन्या के पिता द्वारा

यज्ञ कार्य हेतु एक अथवा दो गाय के बदले में अपनी कन्या का विवाह करना । प्रजापत्य वर स्वंय कन्या के पिता से

कन्या मांगकर विवाह करता था ।

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